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Showing posts from May, 2011

खुदा गवाही-१

बन्दे ने बोला खुदा से:  तूफ़ान से कश्ती मोड़ के, हम लायें हैं तेरे पास, ऐ खुदा! अब तो बता दे, हम आम हैं या ख़ास। यूँ आम लोगों की ज़िन्दगी हमको गवारा नहीं, रोज ख़ुद को पीसना, कोई सहारा नहीं। रोज ज़िन्दगी के साथ, एक नई लड़ाई लड़ना, रोज अधूरे कामों पर, तकदीर को कोसना। कोई तो ऐसा रास्ता हो, की मैं भी खुदा बन जाऊं, मेरे भी कई पुजारी हों, मैं भी ख़ास कहलाओं। खुदा बोला बन्दे से: ऐ बन्दे! तुझे मैंने ज़िन्दगी का तोहफा दिया है, ऐसे मैंने तुझे ख़ास किया है। क्यूँ रोता हैंअपनी तकदीर को, आँखें खोल कर देख, मैंने तुजे इस दुनिया मैं क्या क्या दिया है। इस दुनिया को अपने ढंग से देखने का, प्यार से इसे सवारने का, मैंने तुझे हौसला दिया है, ऐसे ऐ बन्दे! मैंने तुझे भी खुदा का दर्जा दिया है.

Tere aane

तेरे आने की ख़ुशी में हमने, यूँ इतने चिराग जला लिए.. दिल को चिरागों में जला कर, हमने अपने अरमान सजा दिए.   अरमानो की सेज सजी थी, हवाएँ दस्तक भी दे रही थी, हवाओं में बह कर हमने, खुद को पागल भी बना लिया. हर दस्तक पर दौड़े हम, की अब तो तुम आ ही जाओगे. पर जब दरवाजों पर खाली सर सराहट ही हुई, खुद में ही आंसुओं को छुपा लिया. कितना छुपते छुपाते हम , खाली सिलवटों पर. साँसों की भी तो उम्र होती है,  टूट तो वो भी जाती हैं, थक कर हार जाने पर.

Can I?

There is a sea of questions am floating in. struggling to find out the me in me. A voice less known, is often suppressed. not allowed to decide the path that could be correct. A loud noise, often misleads.. Is it a party or a rhetoric of creeds? When everybody is yelling the same words.. Could my words still stand out? When the crowd is walking the other path, Will that hand, still hold out? The road less traveled sounds very alluring, It needs a heart which is very daring. Can I dare to leave all that I have? Can I dare to be happy with losing? Can I dare to stand up to all that I knew? Can I dare to make something new my own? Can I dare for once, to not ask questions? Can I? For once?